पश्चिमी यूरोप में आई भीषण बाढ़ ने 150 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतर दिया है। बहुत से लोग अभी भी लापता है जिनको ढूंढ़ने की कोशिश की जा रही है।
स्विट्ज़रलैंड, लग्ज़मबर्ग और नीदरलैंड्स में भी भारी बारिश का कोप जारी है। स्थितियों को देखते हुए नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री मार्क रूटे ने देश के दक्षिणी प्रांत में आपातकाल घोषित कर दिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से मूसलाधार बारिश की संभावना बढ़ जाती है।
जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रैंक स्टेनमायर ने शनिवार को बाढ़ प्रभावित इलाक़ों का दौरा किया। जर्मनी में सौ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। वॉल्टमायर ने इस बर्बादी पर दुःख व्यक्त किया।
प्रेसवार्ता में स्टेनमायर ने कहा ‘पूरे के पूरे इलाक़ों पर बर्बादी के निशान हैं। बहुत से लोगों ने अपनी जिंदगी भर की पूंजी खो दी है।
लापता लोगों के परिजनों का हाल-बेहाल :
शुक्रवार को भारी बारिश की वजह से लापता लोगों के परिजन बहुत परेशान है।
इस बर्बादी के कारण फ़ोन नेटवर्क टूट गया है, सड़कें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हैं और एक लाख से अधिक घरों में बिजली नहीं हैं।
बारिश से राइन वेस्टफालिया, राइनलैंड-पालाटिनेट और सारलैंड बुरी तरह प्रभावित हैं।
बेल्जियम में बाढ़ से कम से कम बीस लोगों की मौत की आशंका जताई जा रही है।
बेल्जियम में 4 प्रांतों में सेना को राहत और बचाव कार्यों में लगाया गया है. तथा 20 जुलाई को राष्ट्रीय शोक दिवस घोषित किया गया है।
लीज शहर में फ्रांस, इटली और ऑस्ट्रिया से बचावकर्मी सेना को भेजा गया है. यहाँ अचानक आई बाढ़ के बाद नागरिकों को शहर से बाहर निकाल दिया गया है।
वहीं नीदरलैंड्स के लिमबर्ग प्रांत में बढ़ते पानी की वजह से लोग अपने घर छोड़कर जा रहे हैं।
दक्षिणी शहर मास्टराइक्ट और आसपास के शहरों में जलस्तर घट रहा है और लोग अपने घरों को लौट रहे हैं।
स्विट्ज़रलैंड में हुई भारी बारिश के बाद झीलें और नदियां उफान पर हैं।
त्रासदी के कारण :
वैज्ञानिको ने कई सालों पहले ही इस त्रासदी को लेकर चेतावनी दे दी थी कि जलवायु परिवर्तन की वजह से गर्मियों में होने वाली बारिश और हीटवेव भीषण होगी.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग में हाइड्रोलॉजी की प्रोफ़ेसर हाना क्लॉक का कहना है कि अगर समय रहते एहतियात बरत ली होती तो यूरोप में भारी बारिश और बाढ़ की वजह से जो त्रास्दी हो रही है जानें जा रही हैं, इनसे बचा जा सकता था।
वैज्ञानिकों की राय है कि कार्बन का उत्सर्जन कम करना चाहिए और साथ ही विकट मौसम के लिए तैयार भी रहना चाहिए।