कोरोना के कारण सिनेमा इंडस्ट्री पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। कुछ राहत मिलने पर सिनेमा-घरों में रौनक हुई थी, लेकिन कोरोना की तीसरी लहर के आगमन से सिनेमा घरो को नजर लग गई है।
बीते 5-6 साल में सिनेमा मूवीज का आंकड़ा नीचे गिर रहा है। इसकी कई वजह निम्नलिखित है।
कोविड 19 :
एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री पर कोरोना वायरस का कहर बरसा है। महीनों तक सिनेमा हॉल बंद रहे। प्रदेश की सरकारों ने इन्हें खोलने की कोशिश की। लेकिन दूसरी और तीसरी लहर के कारण यह संभव नहीं हो पाया । मार्च 2020 से अब तक सिनेमा हॉल खाली ही रहे है। जर्सी और आरआरआर, राधेश्याम फ़िल्मो की रिलीज़ डेट आगे बढ़ चुकी हैं।
लेखक मिहिर पंड्या ने कहा, ‘भारत में लोग फ़िल्म देखने जाते थे। एक बहुत लम्बे समय से ये हर क्लास के लोगों की लाइफ़स्टाइल का हिस्सा था। लेकिन अभी ऐसा मालूम दे रहा है कि कोविड की वजह से शायद वो आदत ढीली पड़ गयी है। क्यूंकि लोग 83 देखने नहीं गए, जबकि हर शख्स यही कह रहा था कि इस फ़िल्म के दौरान थियेटर भरेंगे.’
दक्षिण का सिनेमा निकला ‘हैवी ड्राइवर’ :
दक्षिण के सिनेमा ने हिंदी फ़िल्मों को खिसकाना शुरू कर दिया है। दक्षिण की काफ़ी फ़िल्में अपने कॉन्टेंट की वजह से ख़ूब नाम कमा रही हैं। लल्लनटॉप के सिनेमा एडिटर और फ़िल्मों के तार खोलने वाले गजेन्द्र सिंह भाटी कहते है कि दक्षिण की फ़िल्मों ने जहां हिंदी फ़िल्मों को पीछे किया है, वो है सैटेलाइट राइट्स. असल में, एक हिंदी फ़िल्म के सैटेलाइट राइट्स ख़रीदने में चैनल जितनी रक़म ख़र्च करता है, उतने में वो ढेरों साउथ इन्डियन फ़िल्में ख़रीद कर उसे दिन-रात अपने चैनलों पर चला सकता है। और इस वजह से दक्षिण के चेहरे भारतीय घरों में घुस गए और बैठे-बिठाए उनकी एक ऑडियंस तैयार हो गयी।
भले ही हिंदी फ़िल्मों की बनिस्बत दक्षिणी फ़िल्मों को थियेटर के अंदर उतनी भीड़ न मिले, लेकिन साउथ इंडियन फ़िल्में अपने ऑडियंस बेस की वजह से ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स पर अच्छे दामों में बिकती हैं।
डायरेक्टर और फ़िल्म प्रोड्यूसर निखिल आडवाणी बता रहे थे कि कैसे दक्षिण भारतीय फ़िल्में एक के बाद एक आती गयीं और यही वजह है कि आज जब पुष्पा रिलीज़ हुई तो हिंदी ऑडियंस के दिमाग में अल्लु अर्जुन की तस्वीर बनी हुई थी।
मेन किरदार की भूमिका :
कुछ फिल्मे इस लिए भी सुपरहिट होती है क्यूंकि उनमे लोगों के फेवरेट हीरो होते है। जनता चेहरे के साथ अच्छा कॉन्टेंट भी चाहती है. इन्हीं सब कारणों से बड़े सितारों वाली फ़िल्मों का बढ़िया मूड नहीं बन पा रहा है और उन्हें तगड़ी ऑडियंस नहीं मिल रही है। ऐक्टर्स की बढ़ती डिमांड भी इसकी एक वजह है।
फ़िल्मों का कम्पटीशन :
सिनेमा को बहुत बड़ा कम्पटीशन यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम, इन्फ़्लुएन्सर्स आदि आदि से मिल रहा है। ये सभी चीज़ें बड़ी आसानी से हम तक पहुंच जाती हैं। और इनका प्रभाव सबसे ज़्यादा उसी पीढ़ी पर पड़ा है। जिसके हाथों में फ़िल्में हिट-फ्लॉप करवाने की ताक़त है.’
ओटीटी भी एक बड़ा कारण :
दर्शक घर बैठे फ़िल्में देखना ज़्यादा पसंद करते हैं। लॉकडाउन ने ओटीटी की पहुंच बढ़ाई है। दर्शक, महंगे होते डीज़ल-पेट्रोल, खाने के तेल और मेट्रो के किराए को ध्यान में रखते हुए यही सोचता है कि कुछ दिन में फ़िल्म टीवी पर देख लेंगे। इसी सब के मद्देनज़र ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स धीरे-धीरे अपना सब्सक्रिप्शन सस्ता भी करते जा रहे हैं।
हालिया कैम्पेनिंग से पड़ा फ़र्क :
सुशांत सिंह राजपूत की मौत ,टाडा और आर्म्स ऐक्ट में जेल जाने वाले संजय दत्त और कई मामलों में जेल जा चुके सलमान खान ,इन सब बातों के कारण भी फिल्म इंडस्ट्री की गरिमा पर सवाल पैदा हो गए है।